महावीर प्रसाद द्विवेदी युग और उसकी विशेषताएँ
महावीर प्रसाद द्विवेदी युग
महावीर प्रसाद द्विवेदी: जीवन और योगदान
महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864-1938) हिंदी साहित्य के एक महान लेखक, संपादक और पत्रकार थे। वे हिंदी साहित्य के समृद्धि और विस्तार के लिए महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पहले व्यक्ति थे। उनके योगदान ने हिंदी भाषा और साहित्य की दिशा को नया मोड़ दिया।
महत्वपूर्ण योगदान:- उन्हें "हिंदी गद्य साहित्य के निर्माता" के रूप में जाना जाता है।
- वे हिंदी जगत के सम्राट थे, जिनका उद्देश्य हिंदी को संस्कृत की तरह सम्मान दिलाना था।
- द्विवेदी जी ने कई पत्रिकाओं का संपादन किया और हिंदी साहित्य में उच्च स्तरीय सुधार किए।
महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक दृष्टिकोण
महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक दृष्टिकोण "संपूर्ण मानवता के विकास" पर आधारित था। वे साहित्य में राष्ट्रीयता, सामाजिक उत्थान, और संस्कृति को बढ़ावा देने के पक्षधर थे। उनकी लेखनी में भारतीय संस्कृति और सामाजिक मूल्यों की रक्षा की भावना प्रबल थी।
साहित्यिक दृष्टिकोण के प्रमुख पहलू:- हिंदी गद्य का विकास और समाज के लिए उपयोगी बनाना।
- साहित्य को समाज सुधारक के रूप में उपयोग करना।
- संस्कृत और हिंदी के बीच संतुलन बनाए रखना।
- हिंदी साहित्य में 'आधुनिकता' का समावेश करना।
महावीर प्रसाद द्विवेदी के प्रमुख कार्य
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कई महत्वपूर्ण काव्य, निबंध और कथा साहित्य रचनाएँ की हैं। उनका प्रमुख योगदान गद्य साहित्य और हिंदी साहित्य में नवीन दृष्टिकोण का था।
प्रमुख कार्य:- काव्य रचनाएँ: 'गोपियाँ', 'नारी', और 'नवीन साहित्य के स्वरूप' जैसी रचनाएँ।
- निबंध: 'हिंदी साहित्य का भविष्य', 'समाज सुधार', 'भाषा और साहित्य' आदि।
- संपादन कार्य: 'सरस्वती पत्रिका' के संपादन में महत्वपूर्ण योगदान।
- हिंदी गद्य साहित्य का विकास: द्विवेदी जी के प्रयासों से हिंदी गद्य को एक नई पहचान मिली।
महावीर प्रसाद द्विवेदी युग की विशेषताएँ
भारतीय नवजागरण का प्रभाव
महावीर प्रसाद द्विवेदी के युग पर भारतीय नवजागरण का गहरा प्रभाव पड़ा। नवजागरण ने हिंदी साहित्य में सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों का मार्ग प्रशस्त किया। द्विवेदी जी ने साहित्य में राष्ट्रीयता और स्वदेशी भावना को बढ़ावा दिया।
नवजागरण के प्रभाव:- समाज सुधार और शिक्षा में सुधार की ओर रुझान।
- भारत के सामाजिक और राजनीतिक हालात को ध्यान में रखते हुए साहित्य में बदलाव।
- हिंदी साहित्य को राष्ट्रीय और सार्वभौमिक दृष्टिकोण से जोड़ा।
हिंदी साहित्य का पुनर्निर्माण
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य का पुनर्निर्माण किया, जिससे साहित्य को एक नया रूप मिला। उन्होंने साहित्य को केवल मनोरंजन नहीं बल्कि समाज सुधार के एक माध्यम के रूप में देखा।
पुनर्निर्माण के प्रमुख पहलू:- हिंदी साहित्य में आधुनिकता का समावेश।
- हिंदी गद्य का उन्नति, जिसे समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने का प्रयास किया।
- साहित्य में उच्च कोटि के नैतिक और सामाजिक मूल्य को प्रधान स्थान दिया।
काव्य, कथा साहित्य और निबंध लेखन में बदलाव
द्विवेदी युग में काव्य, कथा साहित्य और निबंध लेखन में महत्वपूर्ण बदलाव आए। काव्य और निबंध में शुद्धता, सुंदरता और गहराई लाने के लिए द्विवेदी जी ने आधुनिक रचनाओं का समावेश किया।
बदलाव के प्रमुख पहलू:- काव्य में 'प्रकृति चित्रण' और 'देशभक्ति' की भावना को जोड़ा गया।
- कथा साहित्य में समाज की वास्तविक स्थिति को उजागर किया गया।
- निबंध लेखन में ज्ञानवर्धक और समाजिक मुद्दों को प्रस्तुत किया गया।
द्विवेदी युग में भाषा और व्याकरण का विकास
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी भाषा और व्याकरण के विकास में अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से हिंदी साहित्य में भाषा की शुद्धता और व्याकरण की मजबूती आई। उन्होंने हिंदी को संस्कृत के बराबर दर्जा दिलाने की कोशिश की।
भाषा और व्याकरण में बदलाव:- हिंदी भाषा को संस्कृत के समान सम्मानित किया।
- व्याकरण की शुद्धता और सही प्रयोग पर ध्यान केंद्रित किया।
- हिंदी साहित्य में उच्चकोटि के शब्दों और अभिव्यक्तियों का प्रयोग किया।
द्विवेदी युग में समाज सुधारक रुझान
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने समाज सुधारक दृष्टिकोण को अपने साहित्य में जगह दी। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई।
समाज सुधारक रुझान के पहलू:- समानता, महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा पर बल दिया।
- हिंदी साहित्य के माध्यम से जातिवाद और शोषण के खिलाफ संघर्ष किया।
- समाज के हर वर्ग को उन्नति और सुधार की दिशा में प्रेरित किया।
हिंदी साहित्य और हिंदी नवजागरण
हिंदी नवजागरण की उत्पत्ति और प्रभाव
हिंदी नवजागरण की शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में हुई, जब भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलाव की आवश्यकता महसूस की गई। यह नवजागरण आंदोलन भारतीय समाज की जड़ता और पिछड़ेपन को समाप्त करने के उद्देश्य से शुरू हुआ।
नवजागरण के प्रमुख प्रभाव:- भारतीय समाज में जागरूकता और स्वतंत्रता की भावना का विस्तार।
- हिंदी साहित्य को समाज सुधार और राष्ट्रीयता की दिशा में आगे बढ़ाया।
- साहित्य में सामाजिक मुद्दों, शिक्षा, और महिलाओं के अधिकारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया।
- हिंदी भाषा को शुद्ध करने और उसे मानक भाषा बनाने की दिशा में प्रयास किए गए।
महात्मा गांधी और हिंदी साहित्य
महात्मा गांधी का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने हिंदी को एक जनभाषा के रूप में प्रचारित किया और इसे स्वतंत्रता संग्राम के उद्देश्यों के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया। गांधी जी के विचारों और उनके लेखन ने हिंदी साहित्य को एक नया दिशा दी।
महात्मा गांधी का योगदान:- गांधी जी ने हिंदी को जनता की भाषा बनाने का प्रयास किया।
- उन्होंने हिंदी साहित्य को सशक्तिकरण और समाज सुधार के लिए प्रेरित किया।
- गांधी जी के विचारों ने हिंदी कविता और निबंधों में मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक मुद्दों को समाहित किया।
समाज सुधारक और उनकी भूमिका
हिंदी नवजागरण में समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद, और स्त्रीद्वेष के खिलाफ आवाज उठाई। इन सुधारकों ने हिंदी साहित्य को समाज में सुधार की दिशा में प्रेरित किया।
समाज सुधारकों के योगदान:- हिंदी साहित्य के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता फैलाना।
- समानता, शिक्षा, और महिला अधिकारों को बढ़ावा देना।
- नारी सशक्तिकरण और समाज के अन्य पिछड़े वर्गों की स्थिति सुधारने के लिए आवाज उठाना।
हिंदी साहित्य का प्रगति और परिवर्तन
हिंदी साहित्य में नवजागरण के दौरान कई बदलाव हुए। इसके तहत हिंदी कविता, गद्य और निबंध लेखन में सुधार हुआ और हिंदी साहित्य को राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान देने की दिशा मिली।
प्रगति और परिवर्तन के मुख्य बिंदु:- हिंदी गद्य और कविता के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विषयों पर चर्चा की गई।
- हिंदी साहित्य में आधुनिकता का समावेश हुआ और साहित्य को आम जनता तक पहुँचाने का प्रयास किया गया।
- हिंदी साहित्य का उद्देश्य समाज में सकारात्मक परिवर्तन और सुधार लाना बन गया।
- साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति, परंपराओं और इतिहास का संरक्षण किया गया।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
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1. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य में 'साहित्यिक पुनर्निर्माण' के लिए कौन से मुख्य पहलुओं पर जोर दिया?
- a) हिंदी साहित्य में केवल धार्मिक मुद्दों का समावेश करना।
- b) हिंदी भाषा को संस्कृत के समान सम्मानित करना और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना।
- c) केवल पारंपरिक काव्य शैलियों को बढ़ावा देना।
- d) साहित्य में केवल विज्ञान और तात्त्विक विचारों का समावेश करना।
2. 'हिंदी नवजागरण' के संदर्भ में महात्मा गांधी के विचारों के प्रभाव को किस प्रकार से सर्वाधिक स्पष्ट किया जा सकता है?
- a) गांधी जी ने हिंदी साहित्य को केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा और उसमें धार्मिक दृष्टिकोण की कमी की।
- b) गांधी जी ने हिंदी को जन-भाषा के रूप में प्रचारित किया और सामाजिक सुधार की दिशा में उसका उपयोग किया।
- c) गांधी जी ने हिंदी साहित्य में सिर्फ आदर्श और नायक काव्य को बढ़ावा दिया।
- d) गांधी जी ने हिंदी को केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से बढ़ावा दिया, न कि समाज सुधार के लिए।
3. महावीर प्रसाद द्विवेदी के युग में हिंदी गद्य के विकास का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
- a) केवल धार्मिक गद्य लेखन को बढ़ावा देना।
- b) साहित्यिक गद्य के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों का निराकरण करना।
- c) हिंदी गद्य को केवल राष्ट्रीयता के प्रचार का साधन बनाना।
- d) गद्य लेखन को केवल मनोरंजन और कविता से अलग रखना।
4. 'द्विवेदी युग' में हिंदी साहित्य के प्रमुख विकास क्षेत्रों में से कौन सा क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ?
- a) कविता
- b) निबंध लेखन
- c) समाजिक मुद्दे और नैतिकता
- d) कविता और गद्य लेखन दोनों का समान रूप से विकास
5. महात्मा गांधी के हिंदी साहित्य से जुड़ी भूमिका को किस प्रकार से देखा जा सकता है?
- a) गांधी जी ने हिंदी साहित्य को केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से विकसित किया और उसे धार्मिक कर्म से जोड़ा।
- b) गांधी जी ने हिंदी साहित्य को समाज सुधार, जातिवाद और महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में एक महत्वपूर्ण मंच माना।
- c) गांधी जी ने हिंदी साहित्य को केवल विदेशी साहित्य से प्रभावित किया और उसे एक अलग दिशा दी।
- d) गांधी जी ने साहित्य के माध्यम से केवल काव्य लेखन में परिवर्तन किया, न कि गद्य में।
6. 'हिंदी नवजागरण' के दौरान महावीर प्रसाद द्विवेदी ने समाज सुधार के लिए किस प्रकार का साहित्य प्रस्तुत किया?
- a) केवल धार्मिक साहित्य और वेदों के आधार पर।
- b) साहित्य को समाज सुधार, जातिवाद और शिक्षा के सुधार के लिए एक सशक्त माध्यम माना।
- c) उन्होंने साहित्य को केवल भक्ति भावना के प्रचार का साधन माना।
- d) साहित्य में केवल धार्मिक प्रवचन और तात्त्विक विचारों को प्राथमिकता दी।
7. द्विवेदी युग में हिंदी साहित्य में जो सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन आया, वह क्या था?
- a) साहित्य में सिर्फ धार्मिक और नैतिक विषयों का समावेश किया गया।
- b) साहित्य में समाजिक मुद्दों और स्वतंत्रता संग्राम के विचारों को प्रमुख स्थान मिला।
- c) कविता में केवल छंदों और रूपकों को ही महत्व दिया गया।
- d) साहित्य को केवल कला और साहित्यिक उद्देश्य तक सीमित किया गया।
8. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य में भाषा और व्याकरण के विकास के लिए कौन सा प्रमुख कदम उठाया था?
- a) उन्होंने हिंदी को संस्कृत से पूरी तरह से अलग किया।
- b) हिंदी को मानक भाषा बनाने के लिए संस्कृत के साथ उसे जोड़ा।
- c) उन्होंने हिंदी साहित्य में केवल साहित्यिक शब्दों का ही उपयोग करने का आदेश दिया।
- d) उन्होंने हिंदी को केवल उर्दू भाषा से प्रभावित किया।
9. हिंदी साहित्य में द्विवेदी युग की प्रमुख विशेषता क्या थी?
- a) हिंदी साहित्य में केवल पारंपरिक साहित्य का प्रचार हुआ।
- b) हिंदी साहित्य में समकालीन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों का समावेश किया गया।
- c) हिंदी साहित्य में केवल काल्पनिक और फैंटेसी कहानियों का प्रयोग हुआ।
- d) हिंदी साहित्य में धार्मिक विचारों और आस्थाओं का केंद्रित विकास हुआ।
10. महावीर प्रसाद द्विवेदी के विचारों के आधार पर, हिंदी साहित्य के संदर्भ में 'भाषा और समाज' के बीच संबंध को कैसे समझा जा सकता है?
- a) भाषा और समाज को पूरी तरह से अलग करके देखा जा सकता है।
- b) हिंदी भाषा के विकास के साथ समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास किया गया।
- c) समाज का विकास भाषा के बिना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने भाषा के शुद्धता पर ध्यान केंद्रित किया।
- d) समाज के सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के बावजूद भाषा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
11. श्रेणीकृत प्रश्न: महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य में ‘नवीनता’ को पहचानने की आवश्यकता को महसूस किया और उसे एक प्रमुख दिशा दी।
कारण: द्विवेदी युग में हिंदी साहित्य को केवल पारंपरिक विषयों तक सीमित रखा गया था, जिसमें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को महत्व नहीं दिया गया था।
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12. श्रेणीकृत प्रश्न: हिंदी नवजागरण में महात्मा गांधी ने केवल साहित्यिक उद्देश्यों के लिए हिंदी को महत्व दिया।
कारण: गांधी जी ने हिंदी को समाज सुधार, सामाजिक एकता, और स्वतंत्रता संग्राम के उपकरण के रूप में प्रयोग किया था।
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13. श्रेणीकृत प्रश्न: महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्य में जो सबसे महत्वपूर्ण योगदान था, वह हिंदी साहित्य को समाज सुधारक दृष्टिकोण से नया दृष्टिकोण देना था।
कारण: द्विवेदी ने साहित्य में न केवल धार्मिक विचारों को शामिल किया, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों को भी शामिल किया और हिंदी को जन-भाषा के रूप में प्रस्तुत किया।
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14. श्रेणीकृत प्रश्न: द्विवेदी युग के दौरान हिंदी साहित्य में जो परिवर्तन आया, वह केवल कविता में ही हुआ था।
कारण: द्विवेदी ने हिंदी गद्य साहित्य में महत्वपूर्ण बदलाव किए, जिसमें समाजिक मुद्दों, शिक्षा, और महिला अधिकारों को प्राथमिकता दी गई थी।
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15. श्रेणीकृत प्रश्न: हिंदी साहित्य में द्विवेदी युग के दौरान भाषा के विकास के साथ-साथ, हिंदी साहित्य को पूरी तरह से पश्चिमी साहित्य के प्रभाव से मुक्त किया गया था।
कारण: द्विवेदी ने हिंदी को संस्कृत से जोड़ा और उसे शुद्ध करने की कोशिश की, जिससे यह पश्चिमी साहित्य से प्रभावित नहीं हुआ।
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- d) श्रेणीकृत प्रश्न गलत है, लेकिन कारण सही है।
16. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य में 'आधुनिकता' के पहलुओं को किस प्रकार प्रस्तुत किया?
- a) उन्होंने हिंदी साहित्य को पूरी तरह से पश्चिमी प्रभावों से मुक्त किया और केवल पारंपरिक शास्त्रों का पालन किया।
- b) हिंदी साहित्य को सामाजिक परिवर्तन और जातिवाद से लड़ने का एक साधन माना, लेकिन इसमें साहित्यिक रूपों को अधिक महत्वपूर्ण माना।
- c) उन्होंने साहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया, लेकिन केवल साहित्यिक शैली को बढ़ावा देने का प्रयास किया।
- d) द्विवेदी जी ने साहित्य में समाज सुधार, राष्ट्रीयता और आधुनिकता को मिश्रित रूप में प्रस्तुत किया, परंतु भारतीय संस्कृति को अत्यधिक महत्व दिया।
17. महावीर प्रसाद द्विवेदी के साहित्य में 'सामाजिक मुद्दों' का समावेश किस प्रकार से हुआ?
- a) द्विवेदी जी ने केवल राष्ट्रवादी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे साहित्य का सामाजिक प्रभाव कम हो गया।
- b) उन्होंने साहित्य के माध्यम से सामाजिक न्याय, महिलाओं के अधिकारों, और शिक्षा के सुधार को प्राथमिकता दी, लेकिन परंपरा को नजरअंदाज किया।
- c) द्विवेदी जी ने समाज सुधार के लिए साहित्य का इस्तेमाल किया, लेकिन उन्होंने उसे धार्मिक रूप से सीमित रखा और सामाजिक मुद्दों को प्राथमिकता नहीं दी।
- d) उन्होंने समाज के हर वर्ग के लिए साहित्य को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया, और सामाजिक मुद्दों को शुद्ध साहित्यिक दृष्टिकोण से जोड़ा।
18. द्विवेदी युग के साहित्य में 'भाषा' का विकास किस प्रकार हुआ और इसके समाज पर क्या प्रभाव पड़े?
- a) द्विवेदी युग में साहित्य की भाषा का प्रयोग संस्कृत और फारसी के शब्दों से अधिक प्रभावित हुआ, जिससे सामान्य जनता से संपर्क घटा।
- b) उन्होंने हिंदी को मानक भाषा बनाने के लिए संस्कृत से भी अधिक शुद्ध शब्दों का प्रयोग किया, जिससे समाज में विद्वेष पैदा हुआ।
- c) द्विवेदी जी ने हिंदी को एक प्रमुख साहित्यिक भाषा बनाने के लिए उसमें प्रयोग की गई उर्दू और अंग्रेजी शब्दावली को संतुलित किया, जो आम जनता के बीच लोकप्रिय हुई।
- d) द्विवेदी जी ने केवल हिंदी में साहित्य की शुद्धता पर जोर दिया और इसे केवल एक उच्च वर्ग तक सीमित किया, जिससे इसका व्यापक प्रभाव नहीं पड़ा।
19. 'हिंदी साहित्य और समाज' के संबंध में महावीर प्रसाद द्विवेदी की दृष्टि का सही विश्लेषण क्या है?
- a) द्विवेदी जी ने हिंदी साहित्य को एकांत में और समाज से अलग करके देखा, जिससे साहित्य का उद्देश्य केवल शिक्षा तक सीमित रहा।
- b) उन्होंने हिंदी साहित्य को समाज सुधार, राजनीतिक दृष्टिकोण, और सांस्कृतिक जागरूकता के एक सशक्त रूप में प्रस्तुत किया, जिससे समाज के विभिन्न मुद्दों को चुनौती दी।
- c) द्विवेदी जी ने साहित्य को समाज से बिल्कुल अलग करके देखा और उसका उद्देश्य केवल मनोरंजन तक सीमित किया।
- d) उन्होंने साहित्य में केवल धार्मिकता और राष्ट्रवाद के पक्ष को ही प्रमुख स्थान दिया, जिससे समाज की समग्र स्थिति पर असर नहीं पड़ा।
20. महावीर प्रसाद द्विवेदी के साहित्यिक दृष्टिकोण में 'काव्य' के स्थान को किस प्रकार से समझा जा सकता है?
- a) द्विवेदी जी ने काव्य को केवल छंदबद्ध और रसपूर्ण रूप में देखा, बिना किसी सामाजिक संदेश या शिक्षा के।
- b) काव्य को समाज के प्रति जागरूकता और सामाजिक कुरीतियों के विरोध के रूप में प्रस्तुत किया, परंतु इसे केवल साहित्यिक उद्देश्य तक सीमित रखा।
- c) उन्होंने काव्य को समाज सुधार और राष्ट्रीयता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे साहित्य में सशक्त परिवर्तन आया।
- d) द्विवेदी जी ने काव्य को एक अन्यथा रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें न तो साहित्यिक मूल्य थे और न ही समाज में किसी परिवर्तन का प्रभाव था।
21. महावीर प्रसाद द्विवेदी के साहित्य में 'नैतिकता' के सिद्धांत को किस प्रकार से प्रस्तुत किया गया, और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
- a) द्विवेदी जी ने साहित्य में केवल धार्मिक नैतिकता को बढ़ावा दिया, जिससे समाज में केवल एक ही प्रकार के नैतिक मूल्य विकसित हुए।
- b) उन्होंने साहित्य में पारंपरिक नैतिकता के साथ आधुनिकता का संतुलन बनाने की कोशिश की, जिससे समाज में बहु-वर्गीय दृष्टिकोण का विकास हुआ।
- c) द्विवेदी जी ने नैतिकता को साहित्य से अलग करके केवल धार्मिक ग्रंथों में देखा, जिससे साहित्य में नैतिकता की भूमिका नगण्य हो गई।
- d) द्विवेदी जी ने नैतिकता को साहित्य में एक अपरिहार्य तत्व के रूप में प्रस्तुत किया, परंतु उनका दृष्टिकोण केवल उच्च वर्गों तक सीमित रहा।
22. महावीर प्रसाद द्विवेदी के साहित्य में 'पारंपरिकता' और 'आधुनिकता' का द्वंद्व कैसे चित्रित किया गया है?
- a) द्विवेदी जी ने पारंपरिकता को एक दीन-हीन दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे आधुनिकता के विचार को पूरी तरह से स्वीकार किया।
- b) उन्होंने पारंपरिकता और आधुनिकता को समान रूप से महत्वपूर्ण माना, परंतु इसके परिणामस्वरूप कोई स्पष्ट विचारधारा विकसित नहीं हो पाई।
- c) द्विवेदी जी ने दोनों को एक साथ मिलाकर नए विचार प्रस्तुत किए, लेकिन इनमें से कोई भी विचार समाज में पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाया।
- d) द्विवेदी जी ने पारंपरिकता और आधुनिकता के बीच एक संतुलन स्थापित किया, जिससे हिंदी साहित्य में नए दृष्टिकोण और दृष्टि का विकास हुआ।
23. महावीर प्रसाद द्विवेदी के साहित्य में 'राष्ट्रीयता' की अवधारणा को किस प्रकार से स्पष्ट किया गया?
- a) द्विवेदी जी ने राष्ट्रीयता को केवल साम्राज्यवादी शक्तियों से लड़ने के रूप में देखा, और इसे साहित्य में कम महत्वपूर्ण माना।
- b) उन्होंने साहित्य को राष्ट्रीयता के एक प्रभावी उपकरण के रूप में देखा, लेकिन उनका दृष्टिकोण केवल एक वर्ग या भाषा तक सीमित था।
- c) द्विवेदी जी ने राष्ट्रीयता के विचार को साहित्यिक और सामाजिक रूप से जुड़े एक बहुआयामी दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे समाज में जागरूकता फैली।
- d) उन्होंने साहित्य में राष्ट्रीयता की चर्चा केवल भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से की, जिससे इसका वैश्विक प्रभाव सीमित रहा।
24. महावीर प्रसाद द्विवेदी के साहित्य में 'काव्यशास्त्र' के योगदान को किस प्रकार से समझा जा सकता है?
- a) द्विवेदी जी ने काव्यशास्त्र को केवल शास्त्रीय परंपरा तक सीमित रखा और इससे आगे साहित्य में कोई नया विचार प्रस्तुत नहीं किया।
- b) उन्होंने काव्यशास्त्र को एक परिभाषित शास्त्र के रूप में प्रस्तुत किया, जो साहित्यिक सिद्धांतों के साथ जुड़ा हुआ था, लेकिन इससे साहित्य में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ।
- c) द्विवेदी जी ने काव्यशास्त्र को न केवल शास्त्रीय रूप में, बल्कि समकालीन समाज और राष्ट्रीय जीवन से जोड़कर साहित्यिक दृष्टिकोण में बदलाव लाया।
- d) उन्होंने काव्यशास्त्र के पारंपरिक दृष्टिकोण को खारिज किया और साहित्य में नये दृष्टिकोणों की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे साहित्य के क्षेत्र में कोई ठोस परिणाम नहीं आया।
25. महावीर प्रसाद द्विवेदी के साहित्य में 'नारीवाद' की अवधारणा का स्थान और प्रभाव क्या था?
- a) द्विवेदी जी ने नारीवाद को केवल पारंपरिक रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें महिला को हमेशा पुरुषों के समान दर्जा दिया गया।
- b) उन्होंने साहित्य में नारीवाद को एक सशक्त दृष्टिकोण के रूप में पेश किया, लेकिन समाज में इसका कोई गहरा प्रभाव नहीं पड़ा।
- c) द्विवेदी जी ने नारीवाद को केवल शुद्धता और शिक्षा के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन उन्होंने इसके सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया।
- d) द्विवेदी जी ने नारीवाद को समाज में स्त्री-पुरुष समानता के संदर्भ में प्रस्तुत किया, लेकिन उनका दृष्टिकोण केवल उच्च वर्गों तक सीमित था।
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