भारतीय नवजागरण के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव

भारतीय नवजागरण: परिचय

भारतीय नवजागरण का अर्थ

भारतीय नवजागरण 19वीं और 20वीं सदी में भारतीय समाज में आए एक व्यापक बौद्धिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक जागरण को संदर्भित करता है। यह पुनर्जागरण मुख्य रूप से पश्चिमी शिक्षा, विज्ञान, और तर्कवाद से प्रेरित था, जिसने भारतीय समाज में पुरानी कुरीतियों और परंपराओं पर प्रश्न उठाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया।

भारतीय नवजागरण का कालखंड

  • 1757 (प्लासी का युद्ध) से 1947 (स्वतंत्रता) तक का समय नवजागरण के प्रभाव का प्रमुख दौर माना जाता है।
  • इस दौरान ब्रिटिश शासन, ईसाई मिशनरियों, प्रिंटिंग प्रेस, और पश्चिमी विचारों ने भारत के सामाजिक व सांस्कृतिक परिदृश्य को नया आकार दिया।

भारतीय नवजागरण की पृष्ठभूमि

  • ब्रिटिश शासन और पश्चिमी शिक्षा: ब्रिटिश हुकूमत ने शिक्षा प्रणाली में बदलाव किए, जिससे भारतीयों को अंग्रेजी भाषा और यूरोपीय विज्ञान व दर्शन का ज्ञान प्राप्त हुआ।
  • धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलन: 19वीं सदी में राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती, और अन्य सुधारकों ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का प्रयास किया।
  • औद्योगिकीकरण और मुद्रण क्रांति: मुद्रण तकनीक के आने से समाचार पत्र और पुस्तकें आम जनता तक पहुंची, जिससे विचारों का आदान-प्रदान तेज हुआ।
  • भारतीय समाज में असमानता: जातिवाद, सती प्रथा, बाल विवाह, और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों के विरोध में सुधार आंदोलन शुरू हुए।

भारतीय नवजागरण के प्रमुख उद्देश्य

  • समाज में जागरूकता फैलाना और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना।
  • धार्मिक अंधविश्वासों और सामाजिक कुरीतियों का विरोध करना।
  • महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना और उनके अधिकारों की रक्षा करना।
  • राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना और स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत करना।

भारतीय नवजागरण की विशेषताएँ

  • तर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास: भारतीय समाज को अंधविश्वास और रूढ़िवादिता से मुक्त करने का प्रयास।
  • धार्मिक सुधार आंदोलन: ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन जैसे संगठनों की स्थापना।
  • आधुनिक शिक्षा का प्रसार: अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी ज्ञान के माध्यम से नई सोच का विकास।
  • सामाजिक कुरीतियों का विरोध: सती प्रथा, बाल विवाह, जातिवाद आदि के खिलाफ आवाज उठाना।
  • महिला जागरूकता और अधिकार: स्त्री शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देना।
  • राष्ट्रवाद और राजनीतिक चेतना: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान और स्वतंत्रता संग्राम को गति देना।

भारतीय नवजागरण की सीमाएँ

  • सामाजिक परिवर्तन केवल उच्च वर्गों तक सीमित था: सुधारों का प्रभाव मुख्यतः शिक्षित और संपन्न वर्ग तक ही सीमित था, जबकि ग्रामीण और निम्न वर्ग इससे अछूते रहे।
  • पूर्णरूपेण सामाजिक क्रांति नहीं हो पाई: जातिवाद और लैंगिक भेदभाव जैसी समस्याएँ जड़ से समाप्त नहीं हो सकीं।
  • सुधार आंदोलन में एकता का अभाव: विभिन्न सुधारकों और आंदोलनों के बीच समन्वय की कमी थी।

भारतीय नवजागरण का महत्व

  • आधुनिक भारत की नींव रखी: सामाजिक और राजनीतिक चेतना को जन्म दिया।
  • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरणा दी: राष्ट्रवाद और स्वाधीनता आंदोलन को बल मिला।
  • शिक्षा और महिला अधिकारों की दिशा में सुधार: भारतीय महिलाओं और दलित वर्ग के लिए नए अवसर पैदा हुए।
  • सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने में योगदान: सती प्रथा, बाल विवाह, और छुआछूत जैसी प्रथाओं के खिलाफ कानून बने।

भारतीय नवजागरण के प्रमुख कारण

औपनिवेशिक शासन और पश्चिमी शिक्षा

ब्रिटिश शासन के आगमन के बाद भारतीय समाज में कई बदलाव आए, जिनमें प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक और बौद्धिक परिवर्तन शामिल थे। पश्चिमी शिक्षा के प्रसार से भारतीयों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हुआ और सामाजिक कुरीतियों पर प्रश्न उठाए जाने लगे।
  • 1823: ब्रिटिश सरकार ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देना शुरू किया।
  • 1835 का मैकाले का मिनट: लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा को लागू करने की सिफारिश की, जिससे भारतीयों को पश्चिमी ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिला।
  • मिशनरी स्कूल और कॉलेज: मिशनरियों द्वारा स्थापित स्कूलों और कॉलेजों ने ईसाई धर्म के प्रचार के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी दी।
  • प्रेस और मुद्रण क्रांति: समाचार पत्रों और पुस्तकों के माध्यम से लोगों तक नए विचार पहुंचने लगे।
प्रभाव:
  • लोगों में तर्कवादी दृष्टिकोण विकसित हुआ, जिससे धार्मिक अंधविश्वासों पर सवाल उठाए जाने लगे।
  • पश्चिमी शिक्षा से भारतीयों को राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा को समझने का अवसर मिला।
  • नई शिक्षित पीढ़ी ने राष्ट्रवाद और सुधार आंदोलनों की नींव रखी।

धार्मिक सुधार आंदोलनों का प्रभाव

19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में धार्मिक सुधार आंदोलनों की शुरुआत हुई, जिसने नवजागरण को गति दी। इन आंदोलनों ने धार्मिक कुरीतियों, सामाजिक अन्याय और अंधविश्वास के खिलाफ संघर्ष किया।
  • राजा राम मोहन राय और ब्रह्म समाज (1828): सती प्रथा, बहुपत्नी प्रथा और जातिवाद का विरोध किया।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती और आर्य समाज (1875): वैदिक मूल्यों की पुनर्स्थापना और मूर्तिपूजा का विरोध किया।
  • रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद: आध्यात्मिक जागरूकता और मानवतावाद को बढ़ावा दिया।
  • सैयद अहमद खान और अलीगढ़ आंदोलन: मुस्लिम समाज में आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा दिया।
प्रभाव:
  • धार्मिक सुधारों ने सामाजिक सुधारों को भी प्रेरित किया।
  • जाति प्रथा, सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों को चुनौती दी गई।
  • धर्म और तर्क का समन्वय किया गया, जिससे भारतीय समाज में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा मिला।

समाज सुधारकों और उनके योगदान

19वीं और 20वीं शताब्दी में कई समाज सुधारकों ने भारतीय समाज में जागरूकता फैलाने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।
  • राजा राम मोहन राय: सती प्रथा और बाल विवाह का विरोध किया, विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
  • ईश्वरचंद्र विद्यासागर: विधवा पुनर्विवाह कानून (1856) के लिए संघर्ष किया और नारी शिक्षा को बढ़ावा दिया।
  • ज्योतिबा फुले: दलित उत्थान, महिला शिक्षा और सामाजिक समानता के लिए कार्य किया।
  • स्वामी विवेकानंद: भारतीय संस्कृति और योग को विश्वभर में प्रचारित किया।
प्रभाव:
  • समाज में नवचेतना आई और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जनजागरण हुआ।
  • शिक्षा और तर्क पर आधारित सुधारों ने भारतीयों में स्वतंत्रता आंदोलन की भावना को बढ़ावा दिया।

मुद्रण क्रांति और समाचार पत्रों की भूमिका

मुद्रण क्रांति के कारण सूचना का प्रसार तेज हुआ और सामाजिक सुधार व राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा मिला।
  • 1780: जेम्स ऑगस्टस हिकी ने भारत का पहला समाचार पत्र "हिकीज़ बंगाल गजट" प्रकाशित किया।
  • 1818: राजा राम मोहन राय ने "संवाद कौमुदी" नामक पत्रिका निकाली, जिससे सुधारवादी विचारों का प्रचार हुआ।
  • 1857 के बाद: "अमृत बाजार पत्रिका", "केसरी", "मराठा" और "द हिंदू" जैसे समाचार पत्र स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।
प्रभाव:
  • लोगों को सामाजिक सुधार और राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी मिलने लगी।
  • ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना की जाने लगी, जिससे राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला।
  • आम जनता तक नए विचार पहुँचने लगे, जिससे स्वतंत्रता संग्राम को गति मिली।

भारतीय नवजागरण के सामाजिक प्रभाव

सती प्रथा, विधवा पुनर्विवाह और स्त्री शिक्षा

सती प्रथा एक अमानवीय सामाजिक कुप्रथा थी, जिसमें पति की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को भी जबरन चिता में जलाया जाता था। राजा राम मोहन राय ने इस प्रथा के विरुद्ध संघर्ष किया, जिसके परिणामस्वरूप 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया। विधवा पुनर्विवाह को समाज में मान्यता दिलाने के लिए ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने संघर्ष किया, जिसके कारण 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ। स्त्री शिक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए गए:
  • 1848: ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए पहला विद्यालय खोला।
  • 1875: बीएमसी कॉलेज (बेथ्यून स्कूल) की स्थापना कोलकाता में की गई।
  • 1882: हंटर कमीशन ने स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने की सिफारिश की।
प्रभाव:
  • महिलाओं के प्रति समाज में दृष्टिकोण बदला और उन्हें शिक्षा व स्वतंत्रता मिलने लगी।
  • सती प्रथा समाप्त हुई और विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार मिला।
  • महिलाओं में जागरूकता बढ़ी और वे समाज सुधार आंदोलनों में भाग लेने लगीं।

बाल विवाह और जातिप्रथा पर प्रभाव

बाल विवाह भारतीय समाज की एक पुरानी कुप्रथा थी, जिसे रोकने के लिए समाज सुधारकों ने संघर्ष किया। 1884 में बीएम मलाबारी ने सरकार से इस प्रथा को समाप्त करने की मांग की, जिसके परिणामस्वरूप शारदा अधिनियम (1929) पारित हुआ, जिसने विवाह की न्यूनतम आयु लड़कियों के लिए 14 वर्ष और लड़कों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की। जातिप्रथा भारतीय समाज में गहराई से जमी हुई थी। समाज सुधारकों ने जातिवाद को चुनौती दी और समानता के विचारों को बढ़ावा दिया।
  • ज्योतिबा फुले: शूद्रों और अछूतों के लिए शिक्षा व अधिकारों की वकालत की।
  • महात्मा गांधी: अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए आंदोलन चलाया और 'हरिजन' शब्द का प्रयोग किया।
  • डॉ. बी.आर. आंबेडकर: दलित अधिकारों के लिए संघर्ष किया और संविधान में आरक्षण व्यवस्था लागू करवाई।
प्रभाव:
  • बाल विवाह पर रोक लगी और महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार हुआ।
  • जातीय भेदभाव के विरुद्ध कानूनी व सामाजिक आंदोलन शुरू हुए।
  • दलितों और पिछड़े वर्गों को शिक्षा और राजनीतिक अधिकार मिलने लगे।

नारी जागरूकता और स्त्री अधिकार

19वीं शताब्दी में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनके सामाजिक उत्थान के लिए विभिन्न आंदोलन चलाए गए। प्रमुख नारीवादी सुधारक:
  • राजा राम मोहन राय: महिलाओं की शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह के समर्थक।
  • ईश्वरचंद्र विद्यासागर: विधवा पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका।
  • ज्योतिबा फुले: महिलाओं और दलितों की शिक्षा के लिए प्रयासरत।
  • स्वामी विवेकानंद: महिलाओं को शिक्षा और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा दी।
महिलाओं के अधिकारों से संबंधित कानून:
  • हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856): विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति।
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम (1929): बाल विवाह को अवैध घोषित किया गया।
  • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956): महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिला।
प्रभाव:
  • महिलाओं में आत्मनिर्भरता और जागरूकता बढ़ी।
  • उन्हें शिक्षा और रोजगार में अवसर मिलने लगे।
  • भारतीय महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन

ब्रिटिश शासन के दौरान आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गई, जिसने भारतीय समाज में एक नई सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को जन्म दिया। महत्वपूर्ण सुधार:
  • 1835: मैकाले की शिक्षा नीति लागू की गई, जिससे अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा मिला।
  • 1854: वुड का डिस्पैच लागू हुआ, जिसमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के विकास पर जोर दिया गया।
  • 1857: तीन प्रमुख विश्वविद्यालय (कलकत्ता, मद्रास, बॉम्बे) स्थापित किए गए।
  • 1882: हंटर आयोग ने प्राथमिक और स्त्री शिक्षा के प्रसार की सिफारिश की।
शिक्षा से नवजागरण को कैसे बढ़ावा मिला?
  • भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना जागी और स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन मिला।
  • सामाजिक सुधारकों ने जातिवाद, महिला शिक्षा और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई।
  • भारत में पत्रकारिता, साहित्य और सामाजिक जागरूकता का प्रसार हुआ।
प्रभाव:
  • शिक्षा के माध्यम से भारतीय समाज में वैज्ञानिक सोच और तर्कवाद को बढ़ावा मिला।
  • भारतीयों ने ब्रिटिश शासन के अन्याय को समझकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
  • महिलाओं और दलित वर्गों के लिए शिक्षा के अवसर बढ़े, जिससे सामाजिक समानता को बल मिला।

भारतीय नवजागरण के सांस्कृतिक प्रभाव

भारतीय भाषाओं और साहित्य में जागरूकता

भारतीय नवजागरण के प्रभाव से भारतीय भाषाओं और साहित्य में एक नई चेतना आई। साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं बल्कि सामाजिक जागरूकता फैलाना बन गया। प्रमुख प्रभाव:
  • भारतीय भाषाओं में सामाजिक सुधार, राष्ट्रवाद और वैज्ञानिक सोच से जुड़े साहित्य की रचना हुई।
  • बंगाल में बंकिमचंद्र चटर्जी ने "आनंदमठ" (1882) लिखकर राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
  • मराठी, बंगाली, तमिल और हिंदी भाषा में सुधारवादी और राष्ट्रवादी साहित्य का विकास हुआ।
  • अखबारों और पत्रिकाओं के माध्यम से आम जनता में जागरूकता बढ़ी।
प्रभाव:
  • भारतीय भाषाओं में आधुनिक साहित्य और पत्र-पत्रिकाओं का विकास हुआ।
  • लेखकों ने सामाजिक बुराइयों और ब्रिटिश शासन की आलोचना को अपने लेखन में शामिल किया।
  • राष्ट्रीय आंदोलन को सांस्कृतिक और वैचारिक समर्थन मिला।

नवजागरण और हिंदी साहित्य

हिंदी साहित्य पर नवजागरण का गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे नई साहित्यिक विधाओं का विकास हुआ। मुख्य प्रभाव:
  • सामाजिक सुधारवादी लेखन: भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रेमचंद और अन्य लेखकों ने समाज सुधार को अपने साहित्य का प्रमुख विषय बनाया।
  • राष्ट्रवादी भावना: भारतेंदु युग में हिंदी लेखन राष्ट्रीय चेतना का माध्यम बना।
  • यथार्थवाद: प्रेमचंद ने सामाजिक यथार्थ को अपनी कहानियों और उपन्यासों में प्रमुखता दी।
प्रमुख साहित्यकार:
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र: हिंदी गद्य और नाटक के विकास में योगदान, "अंधेर नगरी" जैसे नाटकों की रचना।
  • मुंशी प्रेमचंद: "गोदान" और "गबन" जैसे उपन्यासों में किसानों और समाज की वास्तविकता को दिखाया।
  • जयशंकर प्रसाद: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक चेतना से जुड़े नाटक और कविताएँ लिखीं।
प्रभाव:
  • हिंदी साहित्य ने समाज सुधार और राष्ट्रवादी आंदोलन को नई दिशा दी।
  • जनमानस में सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध चेतना उत्पन्न हुई।
  • नवजागरण के कारण हिंदी साहित्य में यथार्थवाद और तर्कवाद की प्रवृत्ति बढ़ी।

नाटक, पत्रकारिता और प्रिंट मीडिया का प्रभाव

नाटक:
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र: हिंदी नाटक के जनक, जिन्होंने "अंधेर नगरी" जैसे नाटक लिखे।
  • गिरीशचंद्र घोष: बंगाली रंगमंच के संस्थापक, जिन्होंने सामाजिक मुद्दों को अपने नाटकों में उठाया।
  • रामानंद चटर्जी: भारतीय पत्रकारिता को नई दिशा देने वाले प्रमुख व्यक्तित्व।
पत्रकारिता और प्रिंट मीडिया:
  • 19वीं शताब्दी में अखबारों और पत्रिकाओं ने सामाजिक और राजनीतिक चेतना को बढ़ावा दिया।
  • राजा राम मोहन राय ने "संवाद कौमुदी" और "मिरात-उल-अखबार" प्रकाशित किए।
  • बाल गंगाधर तिलक ने "केसरी" और "मराठा" के माध्यम से राष्ट्रवाद को फैलाया।
  • अमृत बाजार पत्रिका, हिंदू पैट्रियट और बंगाली अखबारों ने ब्रिटिश शासन की आलोचना की।
प्रभाव:
  • नाटकों और अखबारों ने जनता में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति जागरूकता बढ़ाई।
  • प्रिंट मीडिया के माध्यम से समाज सुधारकों के विचारों का व्यापक प्रचार हुआ।
  • पत्रकारिता और नाटकों ने भारतीय नवजागरण को एक नई दिशा दी।

संगीत, चित्रकला और स्थापत्य कला पर प्रभाव

संगीत:
  • 19वीं सदी में भारतीय संगीत को आधुनिकता और परंपरा के समन्वय के रूप में देखा गया।
  • रवींद्रनाथ टैगोर ने बंगाली संगीत में नवजागरण लाया।
  • हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत में नए प्रयोग किए गए।
चित्रकला:
  • राजा रवि वर्मा ने भारतीय पौराणिक कथाओं को पश्चिमी चित्रकला तकनीकों के साथ चित्रित किया।
  • अभिनव चित्रकला आंदोलन के तहत नंदलाल बोस और अबनिंद्रनाथ टैगोर ने भारतीय कला को पुनर्जीवित किया।
स्थापत्य कला:
  • ब्रिटिश काल में ग्रीक और रोमन शैली से प्रभावित गॉथिक वास्तुकला का विकास हुआ।
  • भारतीय राजाओं ने अपनी पारंपरिक शैली को संरक्षित करने के लिए नए महलों और मंदिरों का निर्माण करवाया।
  • स्वदेशी आंदोलन के दौरान भारतीय स्थापत्य को पुनर्जीवित करने के प्रयास हुए।
प्रभाव:
  • भारतीय संगीत में पश्चिमी प्रभाव बढ़ा, लेकिन पारंपरिक रागों को संरक्षित किया गया।
  • चित्रकला में भारतीय विषयों को पश्चिमी तकनीकों के साथ प्रस्तुत किया गया।
  • स्थापत्य कला में आधुनिकता और परंपरा का समावेश हुआ।

भारतीय नवजागरण के राजनीतिक प्रभाव

राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता संग्राम

भारतीय नवजागरण ने राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। सामाजिक सुधारों, शिक्षा और तर्कवाद के प्रसार से भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ। मुख्य कारण:
  • ब्रिटिश शासन की नीतियों से असंतोष बढ़ा, जिससे लोगों में स्वशासन की भावना जागी।
  • पश्चिमी शिक्षा और आधुनिक विचारों ने लोकतंत्र, स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों को लोकप्रिय बनाया।
  • धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों ने भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत पर गर्व करना सिखाया।
राष्ट्रवाद के प्रसार में योगदान:
  • राजा राम मोहन राय: सामाजिक सुधारों के साथ-साथ भारतीयों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
  • दयानंद सरस्वती: "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है" के विचार को बढ़ावा दिया।
  • बाल गंगाधर तिलक: उन्होंने गणपति उत्सव और शिवाजी उत्सव के माध्यम से राष्ट्रवाद को जन-जन तक पहुँचाया।
  • बंकिमचंद्र चटर्जी: उनके उपन्यास "आनंदमठ" में "वंदे मातरम्" गीत ने स्वतंत्रता संग्राम में जोश भरा।
प्रभाव:
  • भारतीय समाज में राष्ट्रवाद की भावना मजबूत हुई।
  • सामाजिक सुधारों के कारण जनता स्वतंत्रता संग्राम में अधिक सक्रिय हुई।
  • स्वदेशी आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और असहयोग आंदोलन को व्यापक समर्थन मिला।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और नवजागरण

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना 1885 में भारतीय नवजागरण की राजनीतिक अभिव्यक्ति थी। यह संगठन ब्रिटिश शासन के विरोध में भारतीयों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण रहा। नवजागरण के प्रभाव:
  • भारतीय समाज में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी और लोगों में स्वतंत्रता की भावना मजबूत हुई।
  • कांग्रेस के पहले चरण (1885-1905) में संवैधानिक सुधारों की मांग की गई।
  • 1905 के बाद राष्ट्रवादी नेताओं जैसे लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल ने स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया।
  • नवजागरण के कारण महिलाओं, दलितों और किसानों की भागीदारी बढ़ी।
कांग्रेस के विभिन्न चरण:
  • 1885-1905 (उदारवादी चरण): संविधान सुधारों की मांग, ब्रिटिश सरकार से सहयोग की नीति।
  • 1905-1919 (चरमपंथी चरण): स्वदेशी आंदोलन, बहिष्कार और विदेशी वस्त्रों की होली जलाना।
  • 1919-1947 (गांधीवादी चरण): सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन।
प्रभाव:
  • भारतीयों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी और राष्ट्रीय एकता मजबूत हुई।
  • कांग्रेस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी शक्ति बनी।
  • महिलाओं और युवाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ी।

राजनीतिक चेतना और सामाजिक सुधार

नवजागरण के कारण भारतीयों में केवल सामाजिक सुधार ही नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतना भी विकसित हुई।
  • भारतीय समाज में स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र के विचार तेजी से फैलने लगे।
  • ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों को अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उजागर किया गया।
  • सामाजिक सुधार आंदोलनों ने दलितों, महिलाओं और किसानों को राजनीतिक रूप से सक्रिय किया।
महत्वपूर्ण सुधार आंदोलन:
  • सती प्रथा उन्मूलन (1829): राजा राम मोहन राय के प्रयासों से यह कुप्रथा समाप्त हुई।
  • विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856): ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयासों से लागू हुआ।
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम (1929): इसे "शारदा अधिनियम" भी कहा जाता है।
  • दलित उत्थान: ज्योतिबा फुले, आंबेडकर ने दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
प्रभाव:
  • भारतीय समाज अधिक समानतावादी और लोकतांत्रिक बना।
  • राजनीतिक सुधारों के साथ-साथ सामाजिक सुधारों को भी गति मिली।
  • महिलाओं और दलितों की राजनीति में भागीदारी बढ़ी।

अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका

नवजागरण काल में अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं ने राजनीतिक और सामाजिक सुधारों को व्यापक स्तर पर प्रचारित किया। प्रमुख समाचार पत्र:
  • संवाद कौमुदी (राजा राम मोहन राय): सामाजिक सुधारों और स्वतंत्रता के विचारों का प्रचार किया।
  • अमृत बाजार पत्रिका: ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना की और राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
  • केसरी (बाल गंगाधर तिलक): स्वदेशी आंदोलन और स्वराज की मांग को मजबूत किया।
  • यंग इंडिया (महात्मा गांधी): अहिंसा और सत्याग्रह के विचारों का प्रसार किया।
प्रभाव:
  • अखबारों ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण सूचना स्रोत का कार्य किया।
  • राजनीतिक जागरूकता बढ़ी और ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई गई।
  • सामाजिक सुधारों को गति मिली और भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास हुआ।

भारतीय नवजागरण के प्रमुख व्यक्तित्व

राजा राम मोहन राय और ब्रह्म समाज

राजा राम मोहन राय (1772-1833) भारतीय नवजागरण के अग्रदूत माने जाते हैं। उन्होंने भारतीय समाज में सुधार लाने के लिए ब्रह्म समाज (1828) की स्थापना की। मुख्य योगदान:
  • सती प्रथा का विरोध: उन्होंने इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने इसे प्रतिबंधित कर दिया।
  • मल्टी-रिलिजियस समाज: उन्होंने हिंदू धर्म में सुधार के साथ-साथ इस्लाम और ईसाई धर्म का भी अध्ययन किया।
  • पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा: उन्होंने अंग्रेजी, विज्ञान और आधुनिक शिक्षा को अपनाने पर बल दिया।
  • प्रेस की स्वतंत्रता: उन्होंने "संवाद कौमुदी" और "मिरात-उल-अखबार" जैसे अखबारों के माध्यम से सामाजिक जागरूकता फैलाई।
प्रभाव:
  • भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ।
  • ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ जनचेतना जागृत हुई।
  • आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिला।

स्वामी दयानंद सरस्वती और आर्य समाज

स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) ने भारतीय समाज में वेदों की पुनर्स्थापना और सामाजिक सुधारों के लिए आर्य समाज (1875) की स्थापना की। मुख्य योगदान:
  • "वेदों की ओर लौटो" का नारा: उन्होंने भारतीय समाज में वैदिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की मांग की।
  • जातिवाद और अंधविश्वास का विरोध: उन्होंने मूर्तिपूजा, कर्मकांड और जातिवाद का विरोध किया।
  • शुद्धि आंदोलन: उन्होंने हिंदू धर्म में वापस लाने के लिए शुद्धि आंदोलन चलाया।
  • स्वराज्य का समर्थन: उन्होंने कहा कि भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त होना चाहिए।
प्रभाव:
  • जातिवाद और छुआछूत को चुनौती दी गई।
  • भारतीय समाज में राष्ट्रवादी भावना जागृत हुई।
  • आर्य समाज के विचारों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया।

ईश्वरचंद्र विद्यासागर और शिक्षा सुधार

ईश्वरचंद्र विद्यासागर (1820-1891) समाज सुधारक और शिक्षाविद् थे, जिन्होंने महिलाओं की शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष किया। मुख्य योगदान:
  • विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856): उनके प्रयासों से ब्रिटिश सरकार ने विधवा पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता दी।
  • स्त्री शिक्षा को बढ़ावा: उन्होंने महिलाओं के लिए स्कूल खोले और उनकी शिक्षा को बढ़ावा दिया।
  • संस्कृत भाषा और आधुनिक शिक्षा: उन्होंने संस्कृत कॉलेज में शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाया।
प्रभाव:
  • महिलाओं को शिक्षा और पुनर्विवाह का अधिकार मिला।
  • बंगाल और अन्य राज्यों में महिला शिक्षा का प्रसार हुआ।

ज्योतिबा फुले और दलित जागरण

ज्योतिबा फुले (1827-1890) ने दलित उत्थान, महिला शिक्षा और सामाजिक समानता के लिए आंदोलन चलाया। मुख्य योगदान:
  • सत्यशोधक समाज (1873): उन्होंने समाज में समानता लाने के लिए इस संगठन की स्थापना की।
  • पहला महिला विद्यालय: उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर भारत में पहला महिला स्कूल खोला।
  • जातिप्रथा और ब्राह्मणवादी व्यवस्था का विरोध: उन्होंने "गुलामगिरी" नामक पुस्तक लिखी, जिसमें जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया।
प्रभाव:
  • दलितों और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार मिला।
  • सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आंदोलन को बढ़ावा मिला।

स्वामी विवेकानंद और धार्मिक चेतना

स्वामी विवेकानंद (1863-1902) भारतीय आध्यात्मिक चेतना के अग्रदूत थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और योग को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। मुख्य योगदान:
  • रामकृष्ण मिशन (1897): उन्होंने समाज सेवा और आध्यात्मिक जागरूकता के लिए इस मिशन की स्थापना की।
  • शिकागो धर्म संसद (1893): उन्होंने भारत की संस्कृति और हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और पश्चिमी दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई।
  • युवा जागरूकता: उन्होंने युवाओं को स्वामी बनने और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी।
प्रभाव:
  • भारत में आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा मिला।
  • राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ी।

भारतीय नवजागरण और आधुनिक भारत

समाज सुधार आंदोलनों की निरंतरता

भारतीय नवजागरण के दौरान शुरू हुए समाज सुधार आंदोलनों का प्रभाव स्वतंत्रता के बाद भी जारी रहा। नवजागरण के मूल्यों ने भारतीय समाज में स्थायी परिवर्तन लाने में मदद की। मुख्य सुधार आंदोलन:
  • दलित उत्थान आंदोलन: डॉ. बी. आर. आंबेडकर ने दलितों को शिक्षा और राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन चलाया।
  • नारी सशक्तिकरण: 20वीं सदी में महिलाओं के अधिकारों को लेकर कई सुधार हुए, जैसे हिंदू कोड बिल और महिला आरक्षण।
  • जाति-विरोधी आंदोलन: पेरियार ई. वी. रामास्वामी ने जातिप्रथा के खिलाफ संघर्ष किया और आत्मसम्मान आंदोलन की शुरुआत की।
  • सामाजिक न्याय आंदोलन: पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए आरक्षण नीति को लागू किया गया।
प्रभाव:
  • सामाजिक समानता और न्याय को बढ़ावा मिला।
  • महिलाओं और दलितों के अधिकारों को संवैधानिक सुरक्षा मिली।
  • जातिवाद और लैंगिक भेदभाव को कानूनी रूप से चुनौती दी गई।

नवजागरण और भारतीय संविधान

भारतीय नवजागरण के विचारों का गहरा प्रभाव भारतीय संविधान पर पड़ा। नवजागरण ने समाज में जिन मूल्यों को स्थापित किया, उन्हें संविधान में विधिवत रूप दिया गया। नवजागरण से प्रभावित संवैधानिक प्रावधान:
  • समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18): जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ कानून बनाए गए।
  • धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-28): सभी धर्मों को समान अधिकार दिए गए, जिससे समाज सुधारकों की धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा मजबूत हुई।
  • महिला अधिकार (अनुच्छेद 15(3), 39(d)): विधवा पुनर्विवाह, महिला शिक्षा और लैंगिक समानता को संवैधानिक मान्यता मिली।
  • सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सुरक्षा (अनुच्छेद 46): दलित और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए विशेष नीति बनाई गई।
प्रभाव:
  • भारतीय समाज में लोकतांत्रिक और समतामूलक मूल्यों की स्थापना हुई।
  • नवजागरण के कारण पैदा हुई राजनीतिक और सामाजिक चेतना संविधान निर्माण में सहायक बनी।
  • समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे सिद्धांतों को संवैधानिक संरक्षण मिला।

समकालीन भारत पर नवजागरण का प्रभाव

नवजागरण ने आधुनिक भारत को गहराई से प्रभावित किया। वर्तमान सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों की जड़ें नवजागरण काल में देखी जा सकती हैं। मुख्य प्रभाव:
  • नारी सशक्तिकरण: नवजागरण के कारण महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों को बढ़ावा मिला, जिससे आज महिलाएं राजनीति, विज्ञान, और व्यापार में अग्रणी हैं।
  • जाति-विरोधी आंदोलन: जातिवाद के खिलाफ आंदोलन और आरक्षण नीति को नवजागरण के सुधारकों की सोच से प्रेरणा मिली।
  • धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समरसता: नवजागरण के कारण धार्मिक सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा मिला, जिससे भारत में बहुसांस्कृतिक समाज बना।
  • लोकतांत्रिक सोच: स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना विकसित हुई, जिससे भारतीय लोकतंत्र मजबूत हुआ।
प्रभाव:
  • शिक्षा, महिला अधिकार, और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में बड़े सुधार हुए।
  • भारतीय संविधान में सामाजिक समानता और मानवाधिकारों को सुनिश्चित किया गया।
  • भारत में समाज सुधार और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने का सिलसिला जारी रहा।

भारतीय नवजागरण से संबंधित बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

उत्तर मन में सोच लो... लास्ट में उत्तर दिख जाएगा, फिर मिलाकर देख लेना!

प्रश्न 1: भारतीय नवजागरण के दौरान ‘ब्रह्म समाज’ के संबंध में निम्न में से कौन सा कथन सत्य है?

  • A) इसका उद्देश्य भारतीय परंपराओं की रक्षा करना था।
  • B) यह केवल हिंदू समाज में सुधार का आंदोलन था।
  • C) यह वेदों और पुराणों की संपूर्ण स्वीकृति पर आधारित था।
  • D) यह तर्कवाद और एकेश्वरवाद की विचारधारा पर आधारित था।

प्रश्न 2: आर्य समाज की स्थापना किस उद्देश्य से की गई थी?

  • A) हिंदू समाज में पुरोहितवादी परंपराओं को मजबूत करने के लिए
  • B) सभी धर्मों को समान मान्यता देने के लिए
  • C) वैदिक मूल्यों की पुनर्स्थापना और समाज सुधार के लिए
  • D) इस्लामिक और ईसाई धर्मों के प्रचार के विरोध में

प्रश्न 3: भारतीय नवजागरण के दौरान 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना किसने की थी?

  • A) महात्मा गांधी
  • B) ज्योतिबा फुले
  • C) बाल गंगाधर तिलक
  • D) केशवचंद्र सेन

प्रश्न 4: 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था?

  • A) धार्मिक पुनर्जागरण
  • B) राष्ट्रवादी आंदोलन को बढ़ावा देना
  • C) समाज सेवा और शिक्षा को बढ़ावा देना
  • D) इस्लाम और ईसाई धर्म के खिलाफ आंदोलन

प्रश्न 5: स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण (1893) का मुख्य संदेश क्या था?

  • A) भारतीय संस्कृति और धर्म की श्रेष्ठता
  • B) विश्व शांति और धार्मिक सहिष्णुता
  • C) ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में विद्रोह
  • D) भारतीय समाज में जातिवाद की अनिवार्यता

प्रश्न 6: ‘विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856’ के प्रवर्तन में किसका प्रमुख योगदान था?

  • A) राजा राम मोहन राय
  • B) दयानंद सरस्वती
  • C) ईश्वरचंद्र विद्यासागर
  • D) बी. आर. अंबेडकर

प्रश्न 7: भारतीय नवजागरण के दौरान 'तहज़ीब-उल-अख़लाक़' पत्रिका का प्रकाशन किसने शुरू किया?

  • A) मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
  • B) सर सैयद अहमद खान
  • C) मुहम्मद अली जिन्ना
  • D) इकबाल

प्रश्न 8: भारतीय नवजागरण के विचारकों का मुख्य लक्ष्य क्या था?

  • A) यूरोपियन संस्कृति को अपनाना
  • B) भारतीय समाज में वैज्ञानिक और तार्किक सोच का विकास
  • C) प्राचीन भारतीय परंपराओं को अक्षुण्ण बनाए रखना
  • D) केवल धार्मिक सुधार करना, सामाजिक नहीं

प्रश्न 9: 'प्रार्थना समाज' की स्थापना कहां हुई थी?

  • A) कोलकाता
  • B) मुंबई
  • C) वाराणसी
  • D) मद्रास

प्रश्न 10: 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' को 'पूर्व का ऑक्सफोर्ड' किसने कहा था?

  • A) जवाहरलाल नेहरू
  • B) मदन मोहन मालवीय
  • C) लॉर्ड लिटन
  • D) लॉर्ड कर्ज़न

प्रश्न 11: 'हंटर आयोग' (1882) का मुख्य उद्देश्य क्या था?

  • A) भारतीय शिक्षा प्रणाली का पुनर्मूल्यांकन
  • B) भारतीय पुलिस सुधार
  • C) भारतीय कृषि नीति में सुधार
  • D) ब्रिटिश शासन के लिए प्रशासनिक सुधार

प्रश्न 12: भारतीय नवजागरण के दौरान सबसे प्रभावशाली पत्रिका कौन सी थी?

  • A) बंगदूत
  • B) इंडियन ओपिनियन
  • C) संध्या
  • D) तत्त्वबोधिनी पत्रिका

प्रश्न 13: महर्षि दयानंद सरस्वती की प्रमुख रचना कौन सी थी?

  • A) सत्यार्थ प्रकाश
  • B) आनंदमठ
  • C) हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना
  • D) गीतारहस्य

प्रश्न 14: स्वामी विवेकानंद ने 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना कब की?

  • A) 1893
  • B) 1897
  • C) 1901
  • D) 1911

प्रश्न 15: 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' के पहले अध्यक्ष कौन थे?

  • A) सुरेंद्रनाथ बनर्जी
  • B) दादाभाई नौरोजी
  • C) डब्ल्यू. सी. बनर्जी
  • D) गोपाल कृष्ण गोखले

प्रश्न 16: भारतीय नवजागरण के संदर्भ में, निम्नलिखित में से किस सामाजिक सुधारक ने ‘पुनर्विवाह अधिनियम’ का समर्थन किया, जिसके माध्यम से विधवाओं को पुनर्विवाह करने का अधिकार प्राप्त हुआ था, और इस अधिनियम को 1856 में लागू किया गया?

  • A) स्वामी विवेकानंद
  • B) राजा राममोहन राय
  • C) ईश्वरचंद्र विद्यासागर
  • D) महर्षि दयानंद सरस्वती

प्रश्न 17: भारतीय नवजागरण के दौरान, ‘वर्तमान हिंदू धर्म’ और ‘हिंदू धर्म का विकास’ विषयों पर विचार करते हुए, किसने ‘सिद्धांत कौरव’ नामक पुस्तक लिखी, जो भारतीय समाज में सुधार की आवश्यकता की चर्चा करती है?

  • A) राजा राममोहन राय
  • B) बाल गंगाधर तिलक
  • C) स्वामी विवेकानंद
  • D) आचार्य विनोबा भावे

प्रश्न 18: भारतीय नवजागरण के संदर्भ में, निम्नलिखित में से किस सामाजिक सुधारक ने ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किया और इसे हिंदू धर्म में निचली जातियों के लिए अपनाया?

  • A) महात्मा गांधी
  • B) बी.आर. आंबेडकर
  • C) ज्योतिबा फुले
  • D) स्वामी दयानंद सरस्वती

प्रश्न 19: निम्नलिखित में से कौन-सा भारतीय समाज सुधारक था जिसने ‘आत्मानुशासन’ के सिद्धांत के माध्यम से भारतीय समाज में प्राचीन कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चलाया और इसके लिए ‘सत्संग’ की अवधारणा प्रस्तुत की?

  • A) स्वामी विवेकानंद
  • B) महर्षि दयानंद सरस्वती
  • C) रामकृष्ण परमहंस
  • D) ईश्वरचंद्र विद्यासागर

प्रश्न 20: भारतीय नवजागरण के दौरान, 'ब्रह्म समाज' ने किस प्रमुख धार्मिक परंपरा को समाप्त करने के लिए आंदोलन किया, जिससे भारतीय समाज में सुधार की दिशा तय की गई?

  • A) सती प्रथा
  • B) बाल विवाह
  • C) जातिवाद
  • D) विधवाओं के पुनर्विवाह का विरोध

प्रश्न 21: Assertion (A): स्वामी विवेकानंद ने भारतीय समाज में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया और उन्होंने शिक्षा को महत्वपूर्ण बताया।

Reason (R): स्वामी विवेकानंद के अनुसार, शिक्षा आत्मविश्वास और राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक है।

  • A) A और R दोनों सही हैं और R, A को सही ठहराता है।
  • B) A और R दोनों सही हैं, लेकिन R, A को सही ठहराता नहीं है।
  • C) A सही है, लेकिन R गलत है।
  • D) A गलत है, लेकिन R सही है।

प्रश्न 22: Assertion (A): राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया और इसे समाप्त करने की दिशा में काम किया।

Reason (R): राजा राममोहन राय ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने के लिए कानून बनाए।

  • A) A और R दोनों सही हैं और R, A को सही ठहराता है।
  • B) A और R दोनों सही हैं, लेकिन R, A को सही ठहराता नहीं है।
  • C) A सही है, लेकिन R गलत है।
  • D) A गलत है, लेकिन R सही है।

प्रश्न 23: Assertion (A): महात्मा गांधी ने भारतीय समाज में अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान चलाया और इसे समाप्त करने के लिए सार्वजनिक रूप से आंदोलन किए।

Reason (R): महात्मा गांधी ने भारतीय समाज के भीतर धार्मिक और जातीय भेदभाव को खत्म करने के लिए 'हरिजन' शब्द का इस्तेमाल किया, जिसे बाद में भारतीय संविधान में अपनाया गया।

  • A) A और R दोनों सही हैं और R, A को सही ठहराता है।
  • B) A और R दोनों सही हैं, लेकिन R, A को सही ठहराता नहीं है।
  • C) A सही है, लेकिन R गलत है।
  • D) A गलत है, लेकिन R सही है।

प्रश्न 24: Assertion (A): भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलन शुरू किया, जिसे 'स्वदेशी आंदोलन' के रूप में जाना जाता है।

Reason (R): स्वदेशी आंदोलन में मुख्य रूप से भारत में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार और भारतीय उत्पादों के प्रोत्साहन पर जोर दिया गया था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आर्थिक दबाव बनाना था।

  • A) A और R दोनों सही हैं और R, A को सही ठहराता है।
  • B) A और R दोनों सही हैं, लेकिन R, A को सही ठहराता नहीं है।
  • C) A सही है, लेकिन R गलत है।
  • D) A गलत है, लेकिन R सही है।

प्रश्न 25: Assertion (A): स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो विश्व धर्म महासभा में भारत की धार्मिक परंपराओं का प्रदर्शन किया और भारतीय संस्कृति को विश्वभर में प्रस्तुत किया।

Reason (R): स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधन में भारतीय धर्म को वैज्ञानिक और तर्कसंगत बताया और इसे पश्चिमी सभ्यता के मुकाबले अधिक श्रेष्ठ बताया।

  • A) A और R दोनों सही हैं और R, A को सही ठहराता है।
  • B) A और R दोनों सही हैं, लेकिन R, A को सही ठहराता नहीं है।
  • C) A सही है, लेकिन R गलत है।
  • D) A गलत है, लेकिन R सही है।

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